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रैगिस्थान की जहाज लुप्त होने के कंगार पर ।

राजस्थान की आन, बान और शान कहा जाने वाला रेगिस्तान का जहाज ऊँट अब राजस्थान से ही लुप्त होने लगा है।
देश भर के 70 प्रतिशत ऊँट अकेले राजस्थान में पाए जाते हैं। तेजी से घट रहे हैं ऊँट और उन्हें पालने वाले। भारत जो कभी दुनिया भर में ऊँटों की संख्या के लिहाज से पाँचवें स्थान पर होता था अब लुढ़क कर सातवें स्थान पर आ पहुँचा है।भारत मेँ राजस्थान का ऊँट पालन मेँ एकाधिकार है॥ पिछले 18 वर्षों में राजस्थान में इनकी संख्या आठ लाख से घट कर वर्ष 2007 की पशुगणना के अंतिम आँकडो के अनुसार 4.22 लाख ही रह गयी है। राजस्थान के 33 जिलो मेँ कुल मिलाकर 421836 लाख ऊँट ही बचे है॥ ऊँटो की घटती दर के कारण राष्ट्रीय ऊष्ट्र अनुसंधान केन्द्र जोहडबीड, बीकानेर की स्थापना 5 जुलाई 1984 मेँ की गयी॥ बीकानेर में ही है देश के नामी- गिरामी ऊँट विशेषज्ञ, डॉक्टर तरुण गहलोत जो ऊँटों की संख्या को लेकर खासे चिंतित है। उन्हें भय है कि यदि यही आलम रहा तो कहीं रेगिस्तान का यह जहाज, रेगिस्तान से ही विदा ना ले ले। और वो भी तब, जब इस से प्राप्त होने वाले उत्पाद अपने फायदों के कारण विश्व भर में अपनी अलग से जगह बनाने लगे हैं। वे बताते हैं कि ऊँटनी का दूध यदि बिना उबाले पिया जाए तो तपेदिक जैसी बीमारी को भी ठीक कर सकता है। वे यह भी बताते हैं कि यह दूध मधुमेह का इलाज करने में भी कारगर है। कदम उठाना जरूरी :अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को ऊँट बहुत पसंद आए। राष्ट्रपति भवन में उनके सम्मान समारोह में जब सीमा सुरक्षा बल के सजे धजे ऊँटों ने रोचक कारनामे पेश किए तो उन्होंने ऊँटों को अपने साथ ले जाने की पेशकश तक कर डाली थी। आज भी दिल्ली में होने वाली छब्बीस जनवरी की परेड में ऊँटो की कदम ताल सर्वाधिक तालियाँ बटोरती है पर यह भी सही है कि ताली बजाने वाले इन हाथों को रेगिस्तान के जहाज को बचाने के लिए किसी सार्थक पहल करने की जरूरत है। कहीं ऐसा ना हो कि ऊँट किसी और करवट जा बैठे और हम उसके दर्शनों को ही तरसते रह जाए। -जसविंदर सहगल (जयपुर से) सौजन्य से- डॉयचे वेले, जर्मन रेडियो बीकानेर के पास नापासर के एक गाँव में बड़ी संख्या में राईका जाति के लोग रहते है जो ऊँट पालते हैं। मरू-राईका जाति तो सिर्फ ऊँट पालन से ही अपनी गुजर बसर करती है।मुख्य रूप से देखा जाये तो राजस्थान मेँ ऊँट बाडमेर,बीकानेर,हनुमानगढ,नागौर,जोधपुर,जेसलमेर,चुरू,झुँन्झुनूँ आदि जिलो मेँ बहुयात से राईका जाति द्धारा पाले जाते है॥ राईका व रैबारी जाति के लिए राज्य सरकार ने 13 अप्रेल 2005 को "राजस्थान राज्य पशुपालक कल्याण बोर्ड" की स्थापना की ॥ राज्य सरकार ने कदम जरूर ऊँठाया लेकिन रफ्तार देनी बाकी है आज भी पशुपालक राज्य सरकार द्धारा चलाई जा रही योजना से लाभांवित नही हुँए है योजना को सही बिंदु पर फोकस करना बहुत जरूरी है॥ मेरा एक उद्देश्य मेरा समाज योजनाओँ से परिपूर्ण लांभाविँत हो ताकी ऊँटो को बचाया जा सके यह सोचना बहुत जरूरी है॥  यह ब्लाँग केसा लगा टिप्पणीया अवश्य देँ॥ 

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