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ऊँट पालको का इतिहास -2

ऊँट पालको का इतिहास भाग-2 मेँ आपका ह्रार्दिक स्वागत है। आपने भाग-1 मेँ पढा भगवान शिव ने ऊँट का सर्जन किया उसी प्रकार भाग-2 मेँ हम एक और इतिहास को दोहरायेगे।
उसी प्रकार एक कथा और राईका जाति के लिए प्रचलीत है। कहा जाता है कि राजस्थान के लोकदेवता श्री पाबु जी महाराज अपनी भतीजी केलम की शादी मेँ विचीत्र दहेज देने की सोची । पाबुजी अपने सेवक हरमल राईका को बुलाकर साढडी(ऊँट) लाने को कहा। उस समय भारत मेँ ऊँट नही थे। श्री लंका से ऊँट लाने के लिए हरमल राईका को भेजा । श्री पाबुजी महाराज को ऊँट हरमल राईका ने लाकर दिये थे जो केलम के दहेज मेँ दिये गये। कहा जाता है कि भारत मेँ ऊँट लाने का श्रैँय हरमल राईका को है। राईका जाति श्री पाबुजी महाराज को अपना इष्ट देव मानती है और ऊँट को कुल पशु के रूप मे भी माना जाता है। आज भी ऊँट के बिमार होने पर पाबुजी की पुजा की जाती है॥ राजस्थान के एक और लौँकदेवता श्री रामदेव जी महाराज के समय भी उनका सेवक रतना राईका था जो साढिँया(ऊँट) पर चढकर रामदेवजी की बहिन सुगनाबाई को लाने गया था॥ इसी प्रकार वीर तेजाजी के समय आंशु देवासी था। हमीर राजा के समय भी समाचार लाने व ले जाने वाला ऊँट सवार रेबारी ही तो था। इस प्रकार हम जब भी इतिहास उठाकर देखते है तो रेबारी(राईका)जाति का वर्णन अवश्य मिलता है। इसी प्रकार राईका जाति का प्रमुख व्यवसाय ऊँट पालना ही था और अपना गुजारा पशुपालन से ही चलाते थे॥ आपको ऊँट पालको का इतिहास केसे लगा मित्रो टिप्पणी अवश्य देँ॥ हम आपके लिए अगला ब्लाँग जलद ही लेकर आ रहै है॥ आज ऊँट प्रजाती लुप्त होने के कंगार पर है ऊँट लुप्त हो जायेगे तो राईका समाज का इतिहास भी खतरे मेँ पड जायेगा और रैगीस्थान की जहाँज भी नजर नही आयेगी॥ 

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