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गाय वाला बुड्डा बाबा

जिवन के कुछ पल सिर्फ पहेली बन कर रह जाते है,जिवन भर रूलाते है जिन्दगी भर याद दिलाते है॥
शायद मेरे साथ भी एक घटना ऐसी ही घटी॥ मुझे एक करीबी रिस्तेदार के घर जाना था, मेने अपना समान पेक किया और जा पहुँचा बस स्टेँण्ड, कुछ समय बाद बस आ पहुँची।बस मेँ ज्यादा भिड नही थी।इसलिए मुझे सिट खिडकी के पास ही मिल गयी ।बचपन मेँ मम्मी कहती थी -बेटे खिडकी के पास नही बेठना चाहिय, लेकिन बचपन की आदत इतनी जलदी केसे छुट सकती है, बन्दर भी अपनी बचपन की आदत नही छोडता तो, मेँ केसे छोड सकता था। बस ने अपनी रफ्तार बढा दी, मेने खिडकी से प्रकर्ती का सुदंर नजारे का अवलोकन करना शुरू कर दिया। पेडो ओर खेतो को पिछे छोडती हुयी बस महज 20 किमी जा पहुँची ॥ अचानक मेरी नजरे सडक के एक किनारे से सामने से आ रही गायो के झुँन्ड पर गयी, वो मोटे- मोटे लम्बे -लम्बे सिँगो वाली, स्वेँत -गोधुली गाये मुझे ऐसा लग रहा था ,की मेने जिवन मेँ पहली बार इन नस्लो की गायो को देखा । ये गाये मुझे मेरे क्षेत्र की प्रतीत नही हो रही थी और वास्तव मेँ शैखावाटी मे ऐसी नस्ल की गाय नही होती है॥ महज 300 गायो से कम नही होगी, जिवन मेँ इतनी गाय एक साथ पहली बार देखी॥ ड्राईवर ने भी बस की रफ्तार धिमी कर दी ओर करनी भी थी, इतनी सारी गायो को साईड देना मामुली बात थोडी है। गायोँ का झुँन्ड मेरी खिडकी के बगल से ही गुजर रहा था॥ वो भी सडक के एक किनारे से मानो ऐसा लग रहा था की, फोजीयोँ की परेड चल रही हो॥पशु भी कितने समझदार होते है वो भी सडक पर चलने के नियम जानते है,उन गायो को देखकर मुझे लगा आज कितने लौग मुर्खता के कारण सडक दुर्घटना से शिकार हो जाते है, सडक पर चलना उन पशुओ से सिखीयेँ। उनके बिच मेँ चलता हुँआ एक बुड्डा बाबा महज उसकी उम्र 65 वर्ष से कम नही थी। सफेद धोती-कुर्ता और लाल पगडी(रूमाल) गले मेँ सोने का ताबीज, कानो मेँ सोने के आभुषण, एक हाथ मेँ लाठी, आँखो मेँ आशा की किरणे, लिए हुए बाबा आगे की ओर बढ रहा था मुझे अपने समाज स्मरण हो आया, हमारे समाज की वेशभुषा ओर उस बुड्डे बाबा की वेशभुषा मेँ कोई फर्क नजर नही आ रहा था ॥ बाबा के वस्त्र पर मेँहनत का रंग लगा हुँआ था, मानो की सप्ताह से उनकी धुलाई नही की हो पसीने ओर धुँल से वस्त्र पर काले धब्बे जम गये थे,बाबा की गरीबी और लाचारी का आभास करा रहे थे । मेने सोचा चलो क्योँ ना बस से उतर कर बाबा से पुछ लिया जाये-बाबा आपका गाँव कोनसा है?आप कहाँ जा रहे हो?आपकी जाति क्या है? लेकिन साथ ही बस छुट जाने का भय मेने अपने विचारो को मन मेँ ही दबा लिया और मेँ बस से निचे उतरने की हिम्मत नही जुटा पाया॥ गायो के पिछे ही पिछे 2 नवयुवक साँवला रँग हाथ मेँ लाठी लिये हुँए गायो के संग चल रहे थे मानो भगवान श्री किसन जी हो, पिछे छोटे बछडो व गायो के साथ महिलाये, एक महिला के गोद्द मेँ महज पाँच वर्ष का बच्चा था मानो वो राधा-रूकमण हो कहाँ राधा रूकमण?॥मेँ उनको अपनी आँखो से बडी गोर से निहार रहा था और सभी यात्रीयोँ का ध्यान भी उधर ही था मानो वो भी पहली बार इस विचीत्र द्श्य देख रहे हो। उनकी कमर तोड मेहनत को देखकर मेरा मन पिघल गया।उस समय मेरे नया-नया समाज सेवा का भुत चढा था,की पढ-लिखकर अच्छी नोकरी करके समाज की सेवा करेगे,लेकीन उस समय आर्थीक स्तिथी इतनी मजबुत नही थी,जो उनको कुछ सेवा का मोका दे सकु,मेँ आखिर मन मारकर रह गया ॥ गाय लगभग गुजर चुकी थी बस ने अपनी रफ्तार तेज कर दी। यात्रीयोँ मेँ काना-फुँसी होने लगी,मेरे बगल मेँ बेठे एक बुड्डे ताऊ ने मुझे कहा-"बेटा ये गुजरात साईड रा मारवाडी आदमी है ये 600 किमी चाल र आया है आगे 300 किमी दिल्ली गंगा जमना रे पाल पे गाया ने चरावण ले जासी" शायद ताऊ मेरी जिज्ञासा को भाप लिया था।मेने ताऊजी की बात को नजर अदांज करते हुए अगली सिट पर बेठे दो बुर्जगो की बात मेँ अपना ध्यान लगाया। एक बुर्जग ने अपने पास बेठे बुर्जग से कहा- "कितणी गाय है, कितणी दुर चालके जासी सागे टाबर-टिकर बेचारा,घणा दुख पासी"।हाँ- ये तो है हि सरकार भी अण खातर काई करयो है? मेँ सोचने लग गया वो बुड्डा बाबा 1000 किमी पेदल गायो के साथ केसे चल पाता होगा और चल पाता है तो उसका नाम "लिमका बुक" मेँ क्यो नही है॥अब मेरी सोचने की प्रकिया और दुगुनी हो गयी मेँ सोच मेँ पड गया , बुड्डा बाबा जिसकी उमर 65 के करीब यह कठीन रास्ता केसे तय करता होगा लेकिन मुझे एक बाबा की कहावत स्मरण हो आयी-जिवन मेँ कभी आशा कभी निराशा यही है जिवन की परिभाषा। शायद वो बुड्डा बाबा भी एक आशा की किरण लेकर गंगा के तट की तरफ बड रहा था॥ जिवन मेँ आशा नही हो तो जिने का मतलब ही क्या। मुझे उस बाबा की जिवन की गहराईयो पर प्रकास डालने को विवस कर रही।महिलाये भी इतनी लम्बी दुरी तय केसे करती होगी -अपनी माँ तो आज तक महज पाँच किमी भी पेदल नही चली होगी माँ तो दुर की बात मेँ भी इतना पेदल नही चला। सोचने लगा बाबा को रस्ते मेँ कितने खेत वालो की गालीयाँ सुननी पडती होगी? कितने वाहन ड्राईवरो से निपटना पडता होगा? कितने चोर डकेतो से बच कर चलना पडता होगा? डकेतो का नाम आते ही मुझे बुड्डे बाबा की सोने की ताबीज का स्मरण हो आया बाबा अपने गहनो की रक्षा केसे करता होगा यहाँ तो गली गली मेँ चोर भरे पडे है । बाबा के पास चोरो से निपटने के लिए सिर्फ एक लाठी !लाठी से तो आज कुते भी नही डरते आज के दोर के हथीयार के आगे एकेली लाठी क्या कर सकती है। कानुन भी सक्त नही पशुपालको के लिए ये बेचारे ठहरे भोले और सभ्य। उन पशुपालको का चित्र बार बार मेरी आँखो के सामने स्मरण हो रहा था।लोग आज AC के जमाने मेँ जी रहे है,लेकिन इनको तो गर्मी,बरसात,सर्दी सभी मोसम रहना पडता है। हम तो पलंग पर सोते है ये बेचारे निचे जगलो और खेतो मेँ केसे सोते होगे? ऊपर से जगली जानवरो का डर । इन बेचारे बच्चो की पढने -लिखने की उमर उनको कलम की जगह लाठी थमा देते है पढाई-लिखाई तो सिर्फ कल्पना मात्र  है
सरकार के नेता कितनी-कितनी डिगेँ हाँकते है,कितने -कितने थोथे वादे करते है क्या सिर्फ यह वोटो के लिए करते है?इन पशुपालको को किडे-मकोडे की तरह समझने वाले इन नेताओँ को कोन समझाये।
हे भगवान-कब तक इनके भाग्य मेँ इधर -उधर भटकना लिखा है। आज ऊँची -ऊँची हवेलीयो मेँ राज करने वाले लोगो का दिल नही पिघलता। मेरा मन विवसता से भर आया,अन्दर ही अन्दर दिल रोने को हो आया,आँसु निकलने को हो आये ,जेसे -तेसे कर अन्दर दबाने की कोसीस की। सोचते- सोचते सफर का पता ही नही चला कब गन्तव स्थान पर पहुँच चुका।रिस्तेदार बस स्टाँप पर मेरे इन्तजार मेँ खडे थे,उनसे मिलकर चहरे पर उदासी गायब हो चुकी थी मानो की कुछ हुआ ही नही, जेसा कोई सपना हो।शायद।गाय वाला बुड्डा बाबा रेबारी ही था॥

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